Saturday 18 November 2017

मैं अजमेर .....अद्भुत मेरा रेल म्यूजियम!

मैं अजमेर

अद्भुत मेरा रेल म्यूजियम!

      चौक गऐ ना! जी हा चौकने वाली ही बात है। मैं जिक्र कर रहा हू मेरे एक ऐसे म्यूजियम की जिसकी कल्पना ही अद्भुत है। असल में यह वाल पेंटिग्स है जिसमें अजमेर रेलवे के विकास और रेलवे से जुड़े विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हुऐ करीब 39 वाल पेंटिग्स बनाई है और इसे नाम दिया है रेल म्यूजियम आन वाल। है ना एक नया अद्भुत क्रिएटिव आइडिया!
     इस रेल म्यूजियम की कल्पना को साकार किया अजमेर रेलवे प्रबंधक पुनित चावला ने। आपकी पहल से इसे डीआरएम आफिस के निकट जीएलओ ग्राउंड (जनरल लाइज्निंग आफिस की दीवारों पर बनाया गया है। इसका श्रीगणेश 24 अक्टूबर 2017 को रेल प्रबंधक स्वयं पुनित चावला ने किया। 2 दिन तक चली इस वाल पेंटिग्स के लिए रेल प्रशासन ने सभी कलाकारों को वाल पैनल तैयार करके आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई। इस अद्भुत आयोजन में रेलवे की सहयोगी संस्था रही यूनाईटेड अजमेर।
   जीएलओ ग्राउंड की दीवार पर कुल 39 पेंटिग्स बनाई गई जिनके माध्यम से रेल के इतिहास एवं अजमेर रेलवे के विकास को दर्शाया गया। अजमेर में रेलवे का आगमन सन् 1876 में हुआ जब ब्यावर के लिए यहा से पहली रेल चली। सन् 1889 में यह राजपूताना-मालवा रेलवे का हिस्सा बनी। सन् 1896 में यह मेवाड़ स्टेट रेलवे फिर सन् 1951 में वेस्टर्न रेलवे और फिर सन् 2002 में यह नोर्थ वेस्टर्न रेलवे का हिस्सा बना। इसके अलावा भी समय समय पर रेलवे में कई परिवर्तन हुऐ। इन्हीं को समेटने का यहा एक अच्छा प्रयास हुआ है।
   पहली पेंटिंग में अजमेर जंक्शन का पीले रंग का बोर्ड है, जो हकीकत में स्टेशन का आभास कराती है। इस पर अजमेर जंक्शन की समुद्र तल से अधिकतम ऊॅंचाई 481-88 मीटर दर्शायी है। दूसरी पेंटिग में डीआरएम आफिस की भव्य इमारत है। इसकी नीवं सन् 1884 में रखी गई। तत्कालीन समय में यह मारवाड़ राजपूताना के लिए जनरल लाइज्निंग आफिस के रूप में स्थापित हुआ था किंतु अब डिविजनल रेलवे मैनेजर (डीआरएम आफिस के नाम से जाना जाता है। इमारत की भव्यता विशालता देखते ही बनती है। निओ-गौथिक शैली में बनी इस इमारत में पत्थरों को कैंचीनूमा फंसाकर बनाया गया है। तीसरी पेंटिग में अजमेर स्टेशन का  बाहरी दृश्य है। स्टेशन की भव्यता देखते ही बनती है। इस स्टेशन की शुरूआत सन् 1876 में हुई तथा शैनेः शैने इसके आकार और रूप में विस्तार होता गया। चैथी पेंटिग में लोको अजमेर कारखाना स्थित घंटाघर (क्लाक टावर है जिसमें सन् 1876 अंकित है, जो कि इसकी स्थापना का वर्ष दर्शाता है। इसे स्टीफन स्कूल के कलाकारों ने बनाया। 

   पाचवीं पेंटिग में सन् 1878 में बने स्टीम लोकोमोटिव का चित्र है। यह इंजन सन् 1885 तक राजपूताना रेलवे के लिए और फिर सन् 1952 तक यह जोधपुर राज्य में संचालित रहा। छठे चित्र में शंटिंग लोकोमोटिव को दर्शाया है जो कि भारत का पहला आयातित इंजन था। यह सन् 1873 का निर्मित है जिसका उपयोग अजमेर कारखाने में भी किया गया। सातवें चित्र में मीटर गेज लोको वाईजी 3572 को दर्शाया है जिसका निर्माण चितरंजन लोको में हुआ। यह सन् 1972 तक कार्य में रहा। इसके बाद फैयरी क्वीन इंजन का चित्र है। नाम के अनुरूप यह सुंदर और सबसे पुराना भाप इंजन है। इसका निर्माण सन् 1855 में हुआ। यह आज भी दिल्ली अलवर के बीच संचालित है। इस पेंटिंग को दीक्षिता शाक्या ने बनाया।  
नवीं पेंटिंग में भाप इंजन है जिसके पाश्र्व में खूबसूरत ताज को दर्शाया है। इस पेंटिंग को द्वितीय स्थान से नवाजा गया। दसवीं पेंटिंग में सन् 1873 निर्मित 54 बी क्लास 10-4-4 टी भाप इंजन है। ग्यारवीं पेंटिंग में मीटर गेज स्टीम इंजन है जो नीलगिरी पहाड़ियों में छुक छुक सीटी बजाते हुऐ आगे बढ़ता है। सन् 1940 का बना यह इंजन आज भी अपनी सीटी की आवाज बुलंद किये है। यानी नील गिरी की पहाड़ियों में संचालित है। इसके आगे पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा सन् 1854 में उपयोग किया गया इंजन का दृश्य है। इसे आकाक्षा शर्मा ने बनाया।

   तेहरवीं पेंटिंग में भाप इंजन एम-1 क्लास] 4-4-0 डिजाइन जिसका निर्माण अजमेर लोको में सन् 1913 में हुआ को दर्शाया है। खेतों के बीच गुजरते धू घू का गुबार छोड़ते इस इंजन का चित्र हूबहू बन पड़ा है। इसको चित्रित किया है वंडर ब्रूश के कलाकार विक्रम सिंगोदिया मोनिका चैहान श्वेता शर्मा ने। इस पेंटिंग को प्रथम स्थान से नवाजा गया है। इसके बाद 1910 का भाप इंजन का चित्र है। यह इंजन कराची पोर्ट ट्रस्ट मराला टिम्बर डिपो ईस्ट पंजाब और फिर नोर्थ रेलवे में कार्यरत रहा। इस पेंटिंग को तृतीय स्थान मिला।
   15वीं पेंटिंग में टाय ट्रेन इंजन है। इस टाय ट्रेन की शुरूआत कांकरिया झील अहमदाबाद में सन् 2008 में हुई। इस पेंटिंग का आकांक्षा जैन, तनवी अग्रवाल एवं दामिनी जैन ने बनाया। इसके बाद डी1 क्लास 4-6-4 टी लोकोमोटिव है जिसका निर्माण सन् 1917 में अजमेर में हुआ। इसके बाद सन् 1920 के करीब काम में लिये जाने वाले 4 पहिये वाले कोच का दृश्य है। 18वीं पेंटिंग में वूडन कोच का दृश्य है जो कि आजादी के पूर्व पश्चिमी बंगाल में यूज किया जाता था। इसके बाद नैरो गेज के कोच की पेंटिंग है। यह कोच सेंट्रल रेलवे में काम आता रहा। इसे राजकीय कन्या महाविद्यालय अजमेर की छात्रा नेहा सोनी प्रिया लामा एवं ऐश्वर्या ने बनाया।
   इसके बाद दूंरतो एलएचबी (लिंक हाफमैन बुश कोच की पेंटिंग है। यह सन् 2009-10 में आरम्भ हुऐ जो कि हाई स्पीड ट्रेनों के लिए एक पहल थी। इसके बाद भी एलएचबी कोच की पेंटिंग है। 22वीं पेंटिंग में भाप इंजन है जो कि पहाड़ी वादियों से गुजरती दर्शायी है। 23वीं पेंटिंग में हिमालयन बर्ड नामक टाय ट्रेन को दर्शाया है। दो फीट की नैरो गेज की यह ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी एवं दार्जिलिंग के मध्य चलती है जो कि पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। 24वीं पेंटिंग में मुंबई-थाने के बीच बने पहले ब्रिज का चित्र है। इसका निर्माण सन् 1854 में हुआ।
   इसके बाद नीलगिरी रेलवे का चित्र है जो कि मेट्टूपलयम उदगमंडलम के बीच सन् 1908 में शुरू हुई। 26वीं पेंटिंग में डीजल मल्टिपल यूनिट (डीएमयू का चित्र है जो कि सन् 1990 के आसपास शुरू हुऐ। इसके बाद इलेक्ट्रिक लोको एवं 1940 के दशक में 3 कोच ईएमयू रैक का उपयोग दिखाया है। 29वीं पेंटिंग में अराधना फिल्म का दृश्य है। जिसमें पहली बार ट्रेन को ब्रिज पर चलते हुऐ दो बच्चों का कौतूहलवश देखना दर्शाया है। इसके बाद कालका-शिमला शिवालिका माउंटेन ट्रेन का दृश्य है। इसकी शुरूआत सन् 1898 में हुई जो कि आज भी पर्यटकों को आकर्षण है। इसे सेंट विलफ्रेड के छात्रों ने बनाया। इसके बाद डबल स्टेक कंटेनर टाल्गो ट्रेन बुलैट ट्रेन ग्रीन रेड लाईट सिग्नल के लिए यूज में ली जाने वाली चिराग सिग्नल सिस्टम ट्रेन की पटरियों का जाल लोको कारखाने में बनने वाले हथियार आदि की पेंटिग्स है। इसे बालाजी टैटू आर्ट ग्रुप के नितिन, के कृष्णा एवं भरत ने बनाया।  
   इन पेंटिग्स के जरिये कलाकारों ने रेलवे की कई महत्वपूर्ण जानकारियों पर प्रकाश डाला है। इसमें रेलवे के विकास के साथ साथ अजमेर की इमारतें इतिहास तथ्य रेलवे स्टेशन की भव्य इमारत, डीआएम कार्यालय, ब्रिज, सिग्नल, डिब्बे, ट्रेन, वर्कशाप आदि को बखूबी दर्शाया है जोकि एक सराहनीय कार्य है। कहीं इंजन की सिटी बजती दिख रही है तो कहीं इंजन का धुंआ उठ रहा है। कहीं पुल के ऊपर से ट्रेन गुजर रही है तो कहीं गुफा से निकलती ट्रेन दर्शायी है। कहीं घुमावदार कर्व से गुजरती ट्रेन दिखाई है तो कहीं ट्रेन का सफर करते यात्री भी दर्शाये है जिसे देखकर बरबस ही वाह! निकल पड़ता है।
   रेलवे ने इस कार्य में जुटे सभी कलाकारों को 14 नवम्बर 2017 को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया है। अभियान में सहयोगी रही कीर्ति पाठक के नेतृत्व में यूनाईटेड अजमेर की टीम भी बधाई की पात्र है। रेल विभाग ने इन पेंटिंग्स पर अब इपोक्सी कोटिंग करके इसके बाहर फैंसिंग की है ताकि यह लंबे समय तक सुरक्षित रह सके। लीक से हटकर यह सड़क किनारे रेल संग्रहालय वास्तव में अद्भुत दर्शनीय और जानकारियों से भरा है। इस सुंदर शुरूआत के लिए रेलवे और विशेष तौर पर डीआरएम पुनीत चांवला जी बधाई के पात्र है। उम्मीद है इसे वे और आगे तक ले जायेंगे और इस संग्रहालय को अच्छा आकार दे पाने में सफल होंगे। शुभकामनाओं के साथ,

अनिल कुमार जैन
अपना घर 30
सर्वोदय कालोनी पुलिस लाइन
अजमेर राज - 305001

                     फोन 09829215242

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